प्रेरक प्रसंग

सफल जीवन के सूत्र

💐शक एक ऐसी लाइलाज बीमारी है जिसकी कोई दवा नही। मंदिर में जाते हुए किसी व्यक्ति को देखकर यह अवश्य मेरे बुरे के लिए वहाँ गया होगा इसी का नाम शक है। दूसरों की क्रियाओं के साथ अपनी नकारात्मक कल्पनाओं को जोड़ देना ही शक है।

💐शक आँख और कान का विषय नही अपितु मात्र कल्पना का विषय है। क्योंकि आँख दिखा सकती है कान सुना सकते है मगर कोई आदमी उनका क्या अर्थ निकालता है यह तो उसकी बुद्धि के स्तर पर ही निर्भर करता है। मेरा अपना कोई नही यह सत्य और उनके सब अपने है यह शक है।

💐मुझे लोग देख रहे हैं यह सत्य है पर सब लोग देखकर मुझे जलते हैं यह शक है। हँसना बहुत लाभकारी है यह सत्य है लेकिन लोग मुझ पर हँसते है यह शक है। शक को ख़त्म किया जा सकता है मगर विष से नहीं विश्वास से।

रामू काका अपनी ईमानदारी और नेक स्वाभाव के लिए पूरे गाँव में प्रसिद्द थे। एक बार उन्होंने अपने कुछ मित्रों को खाने पर आमंत्रित किया। वे अक्सर इस तरह इकठ्ठा हुआ करते और साथ मिलकर अपनी पसंद का भोजन बनाते।

आज भी सभी मित्र बड़े उत्साह से एक दुसरे से मिले और बातों का दौर चलने लगा।

जब बात खाने को लेकर शुरू हुई तभी काका को एहसास हुआ कि नमक तो सुबह ही ख़त्म हो गया था।

काका नमक लाने के लिए उठे फिर कुछ सोच कर अपने बेटे को बुलाया और हाथ में कुछ पैसे रखते हुए बोले, “ बेटा, जा जरा बाज़ार से एक पुड़िया नमक लेता आ..”

“जी पिताजी।”, बेटा बोला और आगे बढ़ने लगा।

“सुन”, काका बोले, “ ये ध्यान रखना कि नमक सही दाम पे खरीदना, ना अधिक पैसे देना और ना कम।”

बेटे को आश्चर्य हुआ, उसने पूछा, “पिताजी, अधिक दाम में ना लाना तो समझ में आता है, लेकिन अगर कुह मोल भाव करके मैं कम पैसे में नामक लाता हूँ और चार पैसे बचाता हूँ तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?”

“नहीं बेटा,” काका बोले, “ ऐसा करना हमारे गाँव को बर्वाद कर सकता है! जा उचित दाम पे नामक लेकर आ।”

काका के मित्र भी ये सारी बात सुन रहे थे, किसी ने बोला, “ भाई, तेरी ये बात समझ ना आई, कम दाम पे नमक लेने से अपना गाँव कैसे बर्वाद हो जाएगा?”,

काका बोले, “ सोचो कोई नमक कम दाम पे क्यों बेचेगा, तभी न जब उसे पैसों की सख्त ज़रूरत हो। और जो कोई भी उसकी इस स्थिति का फायदा उठाता है वो उस मजदूर का अपमान करता है जिसने पसीना बहा कर..कड़ी मेहनत से नमक बनाया होगा”

“लेकिन इतनी सी बात से अपना गाँव कैसे बर्वाद हो जाएगा?”, मित्रों ने हँसते हुए कहा।

“शुरू में समाज के अन्दर कोई बेईमानी नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे हम लोग इसमें एक-एक चुटकी बेईमानी डालते गए और सोचा कि इतने से क्या होगा, पर खुद ही देख लो हम कहाँ पहुँच गए हैं… आज हम एक चुटकी ईमानदारी के लिए तरस रहे हैं!”

हमें छोटे-छोटे मसलों में भी पूरी तरह ईमानदार होने की सीख देती है और हमें दूसरों के प्रति संवेदनशील होना सिखाती है।

अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में हम बहुत बार ऐसा व्यवहार करते हैं जो हम भी अन्दर से जानते हैं कि वो गलत है। पर फिर हम ये सोच कर कि “इससे क्या होगा!”, अपने आप को समझा लेते हैं और गलत काम कर बैठते हैं और इस तरह समाज में अपने हिस्से की बेईमानी डाल देते हैं। चलिए, हम सब प्रयास करें कि ईमानदारी की बड़ी-बड़ी मिसाल कायम करने से पहले अपनी रोज-मर्रा की ज़िन्दगी में ईमानदारी घोलें और एक चुटकी बेईमानी को एक चुटकी ईमानदारी से ख़त्म करें!

समय आपके जीवन का सिक्का है। यह आपके पास मौजूद इकलौता सिक्का है। और सिर्फ आप ही यह तय कर सकते हैं कि इसे कैसे ख़र्च किया जाए। सतर्क रहें, वरना आपके बजाय दूसरे लोग इसे ख़र्च कर देंगे।
– कार्ल सैंडबर्ग

कहा हा जाता है, ‘समय ही धन है।’ परंतु यह कहावत पूरी तरह सच नहीं है। सच तो यह है कि समय सिर्फ़ संभावित धन है। अगर आप अपने समय का सदुपयोग करते हैं,

तभी आप धन कमा सकते हैं। दूसरी ओर, अगर आप अपने समय का दुरुपयोग करते है, तो आप धन कमाने की संभावना को गँवा देते हैं।

क्या आप ठीक-ठीक जानते हैं कि आपका समय कितना क़ीमती है? अगर नहीं, तो नीचे दिए फ़ॉर्मूले का प्रयोग करके यह जान लें –

समय का मूल्य ज्ञात करने का फ़ॉर्मूला : आपके एक घंटे का मूल्य = आपकी आमदनी/काम के घंटे

अपनी आमदनी में काम के घंटों का भाग देने से आप जान जाएँगे कि आपके एक घंटे के समय का वर्तमान मूल्य क्या है।

मान लें, आप हर महीने 20,000 रुपए कमाते हैं और इसके लिए आप महीने में 25 घंटे काम करते हैं। यानी आप कल मिलाकर 200 घंटे काम करते हैं। इस स्थिति में आपके एक घंटे का मूल्य होगा : 20,000 (आमदनी) / 200 (काम के घंटे) = 100 रुपए।

इस उदाहरण में यदि आप रोज़ 1 घंटे का समय बर्बाद करते हैं, तो आपको हर दिन 100 रुपए का नुक़सान हो रहा है, यानी एक साल में 36,000 रुपए। यदि आप हर दिन दो घंटे बर्बाद करते हैं, तो इसका मतलब है कि आपको हर साल 72,000 रुपए का नुक़सान हो रहा है। यह अभ्यास करने के बाद आपकी आँखें खुल जाएँगी। इससे एक तो आपको यह पता चल जाएगा कि समय की बर्बादी करने से आपको कितना आर्थिक नुकसान हो रहा है, इसलिए आप समय बर्बाद नहीं करेंगे। दूसरे, इससे अगर आपको यह आभास होता है कि आपके समय का वर्तमान मूल्य संतोषजनक नहीं है, तो आप उसे बढ़ाने के उपाय खोजने
लगेंगे।

इस फ़ॉर्मले का सिर्फ एक बार प्रयोग करने से ही आपके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन हो जाएगा। आप समय के उपयोग को लेकर सतर्क हो जाएँगे। आप समय बर्बाद
करना छोड़ देंगे। आप अपने समय के बेहतर उपयोग के तरीके खोजने लगेंगे। आप कम समय में ज़्यादा काम करने के उपाय खोजने लगेंगे। और यह सब केवल इसलिए होगा, क्योंकि अब आपको पता चल चुका है कि आपके काम का हर मिनट कितना क़ीमती है और उसे बर्बाद करके आप अपना कितना आर्थिक नुक़सान कर रहे हैं।

आधुनिक मनुष्य उन चीज़ों को खरीदने लायक़ पैसा कमाने के पीछे पागल है, जिनका आनंद वह व्यस्तता के कारण नहीं ले सकता।
— फ्रैंक ए. क्लार्क

जिन चीज़ों को मनुष्य ख़र्च कर सकता है, उनमें समय सबसे मूल्यवान है।
– थियोफ्रेस्टस

अल्बर्ट आइंस्टीन

दुनिया के महान वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में  अपना  बड़ा  योगदान दिया है।

           एक बार आइंस्टीन Physics के Relativity नामक टॉपिक पर रिसर्च कर रहे थे और इस चक्कर में वह बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में जाते थे और लेक्चर देते थे ।

           उनका ड्राइवर उनको बहुत बारीकी से देखता था। 

 एक दिन यूनिवर्सिटी में सेमिनार ख़त्म करके आइंस्टीन घर लौट रहे थे , अचानक उनके ड्राइवर ने कहा,”सर आप Relativity पर यूनिवर्सिटी में लेक्चर देते हैं यह तो बहुत आसान काम है, मैं भी कर सकता हूँ ।”          आइंस्टीन ने हँसते हुए कहा,”ओके! ,चिंता ना करो तुम्हें भी एक मौका जरूर दूंगा ।”

         अगले दिन आइंस्टीन नई यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने गए तो उन्होंने अपने ड्राइवर को अपने कपडे पहना दिए और खुद ड्राइवर के कपडे पहन लिए और ड्राइवर से लेक्चर लेने को कहा ।

        उस बिना पढ़े लिखे ड्राइवर ने बड़े बड़े प्रॉफेसर्स के सामने लेक्चर दे दिया, बिना किसी परेशानी के।

       किसी को पता ही नहीं चला कि वह आइंस्टीन नहीं बल्कि उनका ड्राइवर था। 

      लेक्चर खत्म होते ही एक प्रोफ़ेसर ने उस ड्राइवर से कुछ सवाल पूछे।

      ड्राइवर ने चतुराई से जवाब दिया,”इतना आसान सवाल!”, इसका जवाब तो मेरा ड्राइवर ही दे देगा।”   

     ड्राइवर के कपड़े पहने हुए आइंस्टीन आगे आये और सभी प्रश्नों का जवाब देकर उस प्रोफेसर की जिज्ञासा को शान्त कर दिया।

         बाद में आइंस्टीन ने सबको बताया,”लेक्चर देने वाला शख्स मैं नहीं था, वह तो मेरा ड्राइवर था।”

        यह जानकर सभी प्रोफेसर्स ने दातों तले उँगलियाँ दबा लीं किसी को यकीन नहीं हुआ कि जो Relativity बड़े बड़े प्रोफेसर्स को समझ नहीं आती इस ड्राइवर ने उसे कितनी आसानी से दूसरों को समझाया।

        यह था संगति का असर , आइंस्टीन के साथ रहकर एक अनपढ़ ड्राइवर भी इतना बुद्धिमान हो गया।        

        कहा जाता है…….. 

……….. *अच्छी संगति और अच्छे विचार इंसान की प्रगति का द्वार खोल देते हैं।* संगति इंसान के जीवन में बहुत बड़ा महत्व रखती है,यदि हम  बुरी संगति में हों तो हम कितने भी बुद्धिमान क्यों ना हों कभी भी जीवन में आगे नहीं बढ़ पाएंगे और वही यदि हम अच्छे लोगों की संगति में हैं तो  बड़ी बड़ी समस्याएँ भी हमें छोटी लगने लगेंगी।

        सही है न✅✅✅

      तो आईये  कोशिश करें  हम बुरे व्यसन, बुरी आदतों और बुरी संगति से बचने की। उसके बाद तो जीवन बहुत उज्जवल होना ही है। 

 चन्दन पुर के राजा बहुत दयालु थे।वह प्रतिदिन वेष बदलकर अपने राज्य में घूमते थे और प्रजा के सुख दुख को करीब से देखते थे।

          यथासम्भव प्रजा के दुःखों का निवारण भी करते थे।

          एक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकले। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजर रहे थे,

        तभी उनकी नज़र एक किसान पर पड़ी, किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे और वह पेड़ की छाँव में बैठ कर भोजन कर रहा था।

          किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन मे कुछ खुशियां आ पाये।

             राजा किसान के समीप जा कर बोले,

         “हे बन्धु! मैं एक राहगीर हूँ, मुझे तुम्हारे खेत  के पास ये चार स्वर्ण मुद्राएँ गिरी मिलीं हैं  चूँकि यह खेत तुम्हारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो।”

         किसान ने कहा……. 

……….”धन्यवाद! लेकिन ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं,मैं इन्हें नहीं ले सकता। इन्हें आप ही रखें या किसी और को दान कर दें, मुझे इनकी कोई जरूरत  नहीं।”

       किसान का यह जवाब  राजा को बड़ा अजीब लगा।

       राजा तो किसान की सहायता ही करना चाहते थे,एक और कोशिश करते हुए बोले………..

          “बन्धु! धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला आप लक्ष्मी को ना कैसे कर सकते हैं?”

          “सेठ जी!,मैं रोज चार आने कमा लेता हूँ, उतने में ही प्रसन्न रहता हूँ।” सन्तोषी किसान ने जवाब दिया।

        ” क्या! आप सिर्फ चार आने की कमाई करते हैं? और उतने में ही प्रसन्न रहते हैं! यह कैसे संभव है? 

          पूछा राजा ने हैरानी से। 

          किसान ने कहा……   

           ………प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि, आप कितना कमाते हैं या आपके पास कितना धन है………

         *………… प्रसन्नता तो  उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है।

         “तो तुम इन चार आने का क्या-क्या कर लेते हो?”

           राजा ने उपहास के लहजे में प्रश्न किया।

         किसान ने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया, “इन चार आनो में से एक मैं *कुएं* में डाल देता हूँ, दुसरे से *कर्ज* चुका देता हूँ, तीसरा *उधार* में दे देता हूँ और चौथा *मिट्टी* में गाड़ देता हूँ।”

          राजा को किसान का यह उत्तर समझ नहीं आया। वह किसान से इसका अर्थ पूछना चाहता था,लेकिन  जा चुका था।

          अगले ही दिन राजा ने सभा बुलाई पूरे दरबार में कल की घटना कह सुनाई।

राजा ने सभी दरबारियों से किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा।

           दरबारियों ने अपने-अपने तर्क पेश किये पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया।

        अंत में उस किसान को अगले दिन ही दरबार में बुलाने का निर्णय लिया गया।

          सैनिकों ने राजा द्वारा बताए पते पर जाकर किसान को अगले दिन की सभा में उपस्थित होने के  निर्देश दिए।

           राजा का आदेश पाकर किसान अगले दिन नियत समय पर राजदरबार में उपस्थित हो गया।

          राजा ने किसान को उस दिन अपने भेष बदल कर भ्रमण करने के बारे में बताया और सम्मान पूर्वक दरबार में बैठाया।

          “हे सन्तोषी किसान!मैं तुम्हारे उत्तर से प्रभावित हूँ, और तुम्हारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूँ।  बताओ, तुम अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते हो ?”

          राजा ने प्रश्न किया।

       किसान बोला, “हुजूर!, जैसा कि मैंने बताया था, मैं एक आना *कुएं* में डाल देता हूँ, यानि अपने परिवार के *भरण-पोषण* में लगा देता हूँ, दुसरे से मैं *कर्ज* चुकता हूँ, यानि इसे मैं अपने वृद्ध *माँ-बाप की सेवा* में लगा देता हूँ, तीसरा मैं *उधार* दे देता हूँ, यानि अपने *बच्चों की शिक्षा-दीक्षा* में लगा देता हूँ, और चौथा मैं *मिटटी* में गाड़ देता हूँ, यानि मैं एक पैसे की *बचत* कर लेता हूँ ताकि समय आने पर मुझे किसी से माँगना ना पड़े, और मैं इसे धार्मिक, सामजिक या अन्य आवश्यक कार्यों में लगा सकूँ।”

       राजा अब किसान की बात समझ गए थे,उनकी  समस्या का समाधान हो चुका था, वह जान गए थे कि, *यदि हमें प्रसन्न,तनाव रहित एवं संतुष्ट रहना है तो हमें भी अपने अर्जित किये धन का सही-सही उपयोग करना होगा।

           यँहा विचारणीय है कि…………………… पहले की अपेक्षा हमारी आय तो बढ़ी है ,क्या उसी अनुपात में हमारी प्रसन्नता भी बढ़ी है?

    पैसों के मामलों में हम कहीं न कहीं गलती कर रहे हैं, जिन्दगी को संतुलित बनाना ज़रूरी है और इसके लिए हमें अपनी आमदनी और उसके इस्तेमाल पर ज़रूर गौर करना चाहिए, नहीं तो भले हम लाखों रूपये कमा लें पर फिर भी प्रसन्न एवं संतुष्ट नहीं रह पाएंगे!

      सही है न!✅✅✅✅ आईये आज की सुहानी सुबह का शुभारम्भ करें सन्तोषी बनने के संकल्प के साथ…….

    कुछ समय पहले जापान में साबुन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी को अपने एक ग्राहक से यह शिकायत मिली कि उसने साबुन का होल-सैल पैक खरीदा था लेकिन उनमें से एक डिब्बा खाली निकला. 

      कंपनी के अधिकारियों को जांच करने पर यह पता चल गया कि असेम्बली लाइन में ही किसी गड़बड़ के कारण साबुन के कई डिब्बे भरे जाने से रह गए थे।

         कंपनी ने एक कुशल इंजीनियर को रोज़ पैक हो रहे हज़ारों डिब्बों में से खाली रह गए डिब्बों का पता लगाने के लिए तरीका ढूँढने के लिए निर्देश दिया।

 सोच विचार करने के बाद असेम्बली लाइन पर एक हाई-रिजोल्यूशन एक्स-रे मशीन लगा दी गई। 

जिसे दो-तीन कारीगर मिलकर चलाते और एक आदमी मॉनीटर की स्क्रीन पर निकलते जा रहे डिब्बों पर नज़र गड़ाए देखता रहता ताकि कोई खाली डिब्बा बड़े-बड़े बक्सों में नहीं चला जाए। 

         पर सब कुछ इतनी तेजी से होता था कि वे भरसक प्रयास करने के बाद भी खाली डिब्बों का पता नहीं लगा पा रहे थे।

         ऐसे में एक अदना से कारीगर ने कंपनी अधिकारीयों को असेम्बली लाइन पर एक बड़ा सा इन्डस्ट्रियल पंखा लगाने का सुझाव दिया।  

          फरफराते हुए पंखे के सामने से हर मिनट साबुन के सैंकड़ों डिब्बे गुज़रते तो उनमें मौजूद खाली डिब्बा सर्र से उड़कर दूर चला जाता। 

          इस तरह सभी की मुश्किलें पल भर में आसान हो गयी।

         जीवन में भी हमेशा ऐसे मौके आते हैं जब समस्यायों का समाधान बड़ा ही आसान होता है लेकिन हम कई तरह के कॉम्पलेक्स उपायों का उपयोग करते रहते हैं,

जो हमारी मुश्किलों को सुलझाने के बजाय उन्हें और मुश्किल कर देती हैं।

🙏

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एक महिला रोज मंदिर जाती थी ! एक दिन उस महिला ने पुजारी से कहा अब मैं मंदिर नही आया करूँगी !

इस पर पुजारी ने पूछा — क्यों ?

तब महिला बोली — मैं देखती हूँ लोग मंदिर परिसर में अपने फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं ! कुछ ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान चुन रखा है ! कुछ पूजा कम पाखंड,दिखावा ज्यादा करते हैं !

इस पर पुजारी कुछ देर तक चुप रहे फिर कहा — सही है ! परंतु अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले क्या आप मेरे कहने से कुछ कर सकती हैं !

महिला बोली -आप बताइए क्या करना है ?

पुजारी ने कहा — एक गिलास पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइए । शर्त ये है कि गिलास का पानी गिरना नहीं चाहिये !

महिला बोली — मैं ऐसा कर सकती हूँ !

फिर थोड़ी ही देर में उस महिला ने ऐसा ही कर दिखाया !

उसके बाद मंदिर के पुजारी ने महिला से 3 सवाल पूछे –

1.क्या आपने किसी को फोन पर बात करते देखा !

2.क्या आपने किसी को मंदिर में गपशप करते देखा !

3.क्या किसी को पाखंड करते देखा !

महिला बोली — नहीं मैंने कुछ भी नहीं देखा  !

फिर पुजारी बोले —  जब आप परिक्रमा लगा रही थीं तो आपका पूरा ध्यान गिलास पर था कि इसमें से पानी न गिर जाए इसलिए आपको कुछ दिखाई नहीं दिया, अब जब भी आप मंदिर आयें तो अपना ध्यान सिर्फ़ परम पिता परमात्मा में ही लगाना फिर आपको कुछ दिखाई नहीं देगा ! सिर्फ भगवान ही सर्वत्र दिखाई देगें … !!

      !! जाकी रही भावना जैसी ..

       प्रभु मूरत देखी तिन तैसी !! 🌼

   दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास  अनेकों गुलाम थे। उन्हीं में एक गुलाम बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। इस गुलाम का नाम था *लुकमान*।

     एक दिन मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा- “सुनते हैं, कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। यदि तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी।”

     “मैं तैयार हूँ जनाब” हाथ जोड़ कर बोला लुकमान।

     “जाओ,एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा सबसे बढ़िया हो, उसे ले आओ।“ मालिक ने आदेश दिया।

     लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी।

     कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने कहा- “यदि शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है।“

     मालिक ने आदेश देते हुए कहा- “अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।”

     लुक़मान बाहर गया, थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया।

     फिर से कारण पूछने पर लुक़मान ने कहा- “यदि शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा-ही-बुरा है।”

     उसने आगे कहा….   

          “मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है…क्या बोलें? कैसे शब्द बोलें, कब बोलें.. इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है।कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किए हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाए हैं। *जीभ तीन इंच का वो हथियार है जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है।* संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था। “

     मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों को सुनकर बहुत खुश हुए; आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी।

     मालिक ने उसे आजाद कर दिया।

     आईये हम भी अपनी वाणी को मधुर से मधुरतम बनाने का संकल्प करते हुए आज की सुहानी सुबह का शुभारम्भ करें….

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सकारात्मक या नकारात्मक

       एक व्यक्ति काफी दिनों से इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है, उसे बहुत ज्यादा INCOME TAX देना पड़ता है आदि-आदि।

       एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क देख लीजिए। 

       वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में तो ही उसने बेटे को डांट कर भगा दिया।

      थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो देखा कि बेटा होमवर्क की कॉपी हाथ में लिए ही सो गया था। 

        उसने कॉपी देखी उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी।

       *अच्छाई बुराई में*

         वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं। इस *टाइटल* पर बच्चे को एक *पैराग्राफ* लिखना था जो उसने लिख लिया था। 

        उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा पढना शुरू किया बच्चे ने लिखा था •••

        ● मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुंत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं।

        ● मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देता हूँ,शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं।

        ● मैं सुबह – सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देता हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ।

        ● मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं,मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं। 

       होमवर्क पढने के बाद उस व्यक्ति की सोच बदल सी गयी। 

        वह सोचने लगा……

        ●● मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है।

        ●● मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं।

        ●● मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं।

        ●● मैं बहुत ज्यादा INCOME TAX भरता हूँ, इसका मतलब है कि मेरे पास अच्छी नौकरी/व्यापार है और मैं उन लोगों से बेहतर हूँ जो बेरोजगार हैं या पैसों की वजह से बहुत सी चीजों और सुविधाओं से वंचित हैं।

        आज उसके अपने बच्चे की सीख ने उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म कर दी थी। वह एकदम से बदल सा गया।

         हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्ही परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम से बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए-नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।