मेरे गमों पे नजर तुम्हारी नम हुई के नहीं?

मेरे गमों पे नजर तुम्हारी नम हुई के नहीं?
लबों की खुशियाँ बता तबाह हुई के नहीं?

मैं आज क्यों ये भला सवाल तुमसे करूँ!
मेरे यह जज्बात कोई गजल हुई के नहीं?

ये शाम होते ही तेरा ख्याल दिल को आता हैं!
यहाँ बहुत हुई,तेरे गाँव बारिशें हुई के नहीं?

मैं आज भी यूँ ही तेरी राह तकता रहता हूँ!
के लौट आये, तेरे सड़क पक्की हुई के नहीं?

दौर बदला हैं अब खत भी कौन लिखता है!
कहानी अपनी बता के पुरानी हुई के नही?

कटा मुश्किलों से ये दौर,लम्हा,घण्टे,दिन,महीने,
साल,सदियाँ अब क्या ये उम्र कम हुई के नहीं?

न थी नींद आँखों में, सो बात लिखने बैठ गया!
“हरि ॐ”पूँछता है बता ये बात गजल हुई के नहीं?

हरि ॐ
हनुमान प्रसाद जांगिड़
28 नवम्बर 2021

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