बस समझ नहीं, खुद को कैसे संभालू।

गिरती हुई दीवारों का हमदर्द हूँ यारों
बस समझ नहीं, खुद को कैसे संभालू।

सूरज की रोशनी का साया हूँ यारों
जाऊं अगर तो कहीं ठौर नही मुझको।

चन्दा की शीतल रात की चमक हूँ यारों
जलना चाहूँ तो भी तपन नहीं मुझमें।

हरे भरे रंग के मैदानों की खुशी हूँ यारों
यकीं नहीं आता कब पतझड़ हैं मन में।

समुद्र से उछली एक छोटी बूँद हूँ यारों
सूरज की रोशनी पाकर मिटना है यारों।।

हरि ॐ
12 नवम्बर 2021

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