जागना है

जागना है
बचपन में सोने के अठारह घण्टे
मगर रात में बार बार जागना

फिर खेलना कूदना लड़ना झगड़ना
सोते सोते बोलना फिर जागना

समझदारी आने लगी पढ़ना प्रारम्भ
सबको छोड़ना पीछे,पड़ा जागना

जवानी आ पहुँची,स्वप्न चिड़ियों से
कहीं नोकरी तो दिल्लगी का जागना

हुई पूरी मुराद अब हालात बदले है
मगर फिर से कमाना,भागना, जागना

कितना समय बीत गया उम्र ढलने लगी
खुद की चिन्ता गई अब अपने हेतु जागना

मृत्यु भी कहाँ सहज है इस जागने भर में
पीड़ाएँ मन से उतरी तो पड़ा तन को जागना

सोना एक बहाना है दिन से दूर होने का
वरना कमाई के लिये पड़ता है जागना

खैर बीत ही जाती है तमाम उम्र
एक चिर नींद से पूर्व पड़ा बहुत जागना

हरि ॐ

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