एक बार एक आदमी कुँए पर पानी पी रहा था, तो उसे पानी पिलाने वाली बहन ने मजाक में कह दिया कि तेरे पेट में छोटी-सी छिपकली चली गयी । असल में एक छोटा पत्ता था, जो कुँए के पास लगे पेड़ से गिरा था । उस आदमी के दिमाग में यह बात बैठ गयी कि मेरे पेट में छिपकली चली गयी, अब मै ठीक होने वाला नहीं हूँ ।
उस व्यक्ति के परिजनों ने बहुत ईलाज करवाया, किन्तु वह किसी से भी ठीक नहीं हुआ । तब एक बहुत अनुभवी बृद्ध वैद्य ने उस व्यक्ति का पूरा इतिहास सुना और सुनने के बाद उस आदमी को कहा बेटा तू ठीक हो जायेगा, क्योकि अब छिपकली के निकलने का समय आ गया ।
वैद्य ने उस पानी पिलाने वाली बहन को कहा कि उस आदमी को उसी कुँए पर लाकर पुनः पानी पिलाना । जैसे ही वह व्यक्ति अंजलि बना कर पानी पीने बैठा तो पीछे से किसी ने उसे जोर का थप्पड़ लगाया और कहा कि देखो वह छिपकली निकल गयी । कितनी बड़ी होकर निकली । अगले दिन से वह आदमी धीरे-धीरे ठीक होने लगा । महीने भर बाद वह आदमी एकदम ठीक हो गया । न किसी ने छिपकली पेट में जाते देखी, न बाहर आते । इंसान का मन ऐसा हैँ कि यदि कोई बात बैठ गयी तो वह असंभव को भी संभव बना लेता हैँ ।
एक बार किसी व्यक्ति को निराश कर दीजिये, फिर वह कुछ करने योग्य नहीं रह जायेगा । भय का भूत आप खुद जागते हैँ, निराशा की राक्षसी को आप अपने अंदर खुद पैदा करते हैँ, चिंता की डायन कही और से नहीं आती, आपके अंदर से ही पैदा होती हैँ ।
इसलिये वेदों में एक स्थान पर आया हैँ कि मै इंद्र हूँ, राजा हूँ, किसी से हारने वाला नही हूँ ।स्वयं को स्वामी मानकर चलो, यह मानकर चलो कि आप किसी से पराजित नहीं हो सकते- न अपनी समस्याओ से, न बीमारियों से, न कष्टों से और न ही निराशाओ से ।
1 thought on “निराशा”
Leave a Comment
You must be logged in to post a comment.
very nice