हम कुछ न समझेंगे

हम कुछ न समझेंगे आखिर ये दुनियाँ समझाती किसे हैं।
और तुम कहते हो सो जाएँ बताओ नींद भी आती किसे है।

चाँद भी आ पहुँचा आसमाँ में अब तो सितारों के दरमियाँ
देखते है ये दूरियाँ भी हम में सें पहले पास बुलाती किसे है।

दस्तूर तो जरूर ही रहेगा तेरी मनाही का हम पर सदा
मगर जरा भी पास न आने आखिर बताओ सब्र किसे है।

कुछ रोज दूर रहने का हमने सोचा है कई कई बार
बेचैनी कहती है ये साँसे भी तेरे बगैर आती किसे है।

समझ लो रेगिस्तान में बहती नदी की धारा हूँ मै तो
कितना भी बरसो ये मिट्टी सागर तक जाने देती किसे है।

मैं रात दिन बस यूँ ही बहकता रहूँ इस दीवानेपन में
मगर ये खुमारी तो “हरि ॐ” सम्भल जाने देती किसे है।

हरि ॐ

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