बरस चुके बादलों

बरस चुके बादलों के पानी को,क्यों न गन्दा किया जाए।
खुद थोड़ा सा बेईमान बनकर क्यों न मशहूर हुआ जाए।।

कोई नहीं सुनता आज जमाने भर में दिल की जुबान।
तोड़ दी जाए सब हदे,चलो आज ही ये दस्तूर किया जाए।।

लोग मानते ही नहीं है यहाँ किसी भी उसूल को आज
तो क्यों न ऐसे लोगों से दूरियाँ अब तो हूजूर की जाए।।

कुछ लोग बताएँगे तुम्हे खास अपना,अपनों में खास।
जिनको परखा वो न हुए ,अब नए पे क्यों यकीं किया जाए।।

बीत रहा है एक दिसम्बर और, अब जनवरी से उम्मीद कर
“हरि ॐ”खुद ही से एक वादा क्यों न और किया जाए।।

हरि ॐ

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