एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :-

 

"कहो राम !  सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ  ?"

 

राम मुस्कुराए :-  "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?"

 

"जानते हो राम !   तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्में भी नहीं थे|   यह भी नहीं जानती थी,   कि तुम कौन हो ?   कैसे दिखते हो ?   क्यों आओगे मेरे पास ?   बस इतना ज्ञात था,   कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा|

 

राम ने कहा :- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था,   कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है|

 

"एक बात बताऊँ प्रभु !   भक्ति के दो भाव होते हैं |   पहला  मर्कट भाव,   और दूसरा  मार्जार भाव|

 

बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है,   और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है|  दिन रात उसकी आराधना करता है... (मर्कट भाव)

 

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया|  मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी,   जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न,   वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी,   और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है...   मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना..." (मार्जार भाव)

 

राम मुस्कुरा कर रह गए |

 

भीलनी ने पुनः कहा :-   "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न...   कहाँ सुदूर उत्तर के तुम,   कहाँ घोर दक्षिण में मैं|   तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य,   मैं वन की भीलनी...   यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?

 

राम गम्भीर हुए | कहा :-

 

भ्रम में न पड़ो मां !   राम क्या रावण का वध करने आया है ?

 

रावण का वध तो,  लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है|

 

राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है,   तो केवल तुमसे मिलने आया है मां,   ताकि सहस्त्रों वर्षों बाद,  जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे,   कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था|

 

जब कोई  भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं !   यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ,   एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|

 

राम वन में बस इसलिए आया है,   ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय,   तो उसमें अंकित हो कि शासन/प्रशासन/सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है|

(अंतयोदय)

 

राम वन में इसलिए आया है,  ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं|   राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं  मां|

 

माता सबरी एकटक राम को निहारती रहीं |

 

राम ने फिर कहा :-

 

राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है,   भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए|

 

राम निकला है,   ताकि विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है|

 

राम निकला है,   कि ताकि भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है|

 

राम आया है,   ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है|

 

राम आया है,   ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय|

 

और

 

राम आया है,   ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं|

 

सबरी की आँखों में जल भर आया था|

उसने बात बदलकर कहा :-  "बेर खाओगे राम ?

 

राम मुस्कुराए,   "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"

 

सबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|

 

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :-

"बेर मीठे हैं न प्रभु ?

 

"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ,  कि यही अमृत है|

 

सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :-   "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम"

 

अखंड भारत-राष्ट्र के महानायक, मर्यादा-पुरुषोत्तम, भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन !🙏