श्लोक भावार्थ सहित

1-छिन्दन्ति शस्त्राणि यथा न वारि
स्वेदं सुघर्मो न करोति शुष्कं।
तथा न कान्तिं हरते प्रवात:
शक्नोति सत्यं न मृषा च नष्टुम्।।

जिस प्रकार शस्त्र सब कुछ काट सकते हैं, किन्तु पानी को नहीं।अच्छी धूप सब कुछ सुखा देती है, किन्तु पसीने को नहीं।हवा सब कुछ हर लेती है, किन्तु चमक को नहीं। उसी प्रकार झूठ सब नष्ट कर सकता है परन्तु सच को नहीं।

2- “पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति ।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥”
(नीतिशतकम्)

भावार्थ :-
पाप (अहित) कर्मो से हटा कर हित योग्य कर्मो में लगाता है , गुप्त रखने योग्य बातो को छिपाकर गुणों को प्रगट करता है , आपदा के समय जो साथ खड़ा होता है , सज्जनों ने यही सन्मित्र के लक्षण बताये है |

3- विदुर ने अवसर देखकर युधिष्ठिर से पूछा, “वत्स, यदि जंगल में भीषण आग लग जाये, तो जंगल के कौन से जानवर सुरक्षित रहेंगे ?”

युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “तात, जंगल में आग लगने पर, स्वछंद और निर्भय घूमने वाले, शेर चीते, हाथी और सबसे तेज भागने वाले हिरण आदि सारे जानवर, जंगल की आग में जलकर राख हो जायेंगे। परन्तु बिलों में रहने वाले चूहे सुरक्षित रहेंगे। दावानल के शांत होने पर वो पुनः बिलों से बाहर निकल कर, शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करेगें.!

“वत्स युधिष्ठिर, तुम्हारे उत्तर से मैं निश्चिंत हुआ। मेरी समस्त चिंतायें दूर हुईं।
जाओ, सुरक्षित रहो। यशस्वी भव। “विदुर ने आर्शीवाद दिया।

4-दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।
यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा॥

जिस प्रकार दीपक अंधकार का भक्षण कर काला धुँआ/ काजल उत्पन्न करता है, वैसे ही हम जिस प्रकार से उपार्जित अन्न ग्रहण करते हैं, हमारे विचार भी क्रमशः वैसे ही बन जाते हैं।

A lamp removes (eats) darkness and produces smoke side by side. Similarly money earned through deceptive/ sinful/ corrupt/unlawful means by an individual makes his mentality alike.

जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन।

इतने दिवस पूरे हुए, नहीं हुआ रिपु मंद,
अब प्रहार भीषण करें, रहें चाक चौबंद।

5- गृहस्थाश्रम निन्दा

क्रोशन्तः शिशवः सवारि सदनं पङ्कावृतं चाङ्गणं
शय्या दंशवती च रूक्षमशनं धूमेन पूर्णं गृहम् ।
भार्या निष्ठुरभाषिणी प्रभुरपि क्रोधेन पूर्णः सदा
स्नानं शीतलवारिणा हि सततं धिग्धिग्गृहस्थाश्रमम् ।।

जिसके घर पर बालक हमेशा रोदन करते हों, घर पर हर जगह जल गिरा हो ( जल से भरा घर हो ), कीचड़ से भरा आंगन हो, खटमल से भरी खाट हो, भोजन रूखा सुखा हो, घर में चारों तरफ धुआं हो, भार्या ( पत्त्नी ) कठोर वचन बोलने वाली हों, स्वामी ( पति ) क्रोधं से भरा हुआ हो तथा जिस घर मे प्रतिदिन ठंडे पानी से नहाना पडे ऐसे गृहस्थाश्रम को धिक्कार है!

6-काकभुशुण्डि जी ने गरुड़ जी को सन्त के लक्षण बताने के बाद असंत के बारे में बताना शुरू किया——-
असंत— पर दुख हेतु असंत अभागी।
जहाँ सन्त दूसरों को सुख देने को दुःख सहते है, वहीं अभागे असंत दूसरों को दुःख पहुँचाने के लिए खुद दुःख सह लेते है।
सन इव खल पर बन्धन करई।
खाल कढाइ बिपत्ति सहि मरई।।
खल बिनु स्वारथ पर अपकारी।
अहि मूषक इव सुनु उरगारी।।
दुष्ट लोग सन की भाँति दूसरों को बाँधते है और उन्हें बाँधने के लिए अपनी खाल खिंचवाकर विपत्ति सहकर मर जाते है। हे सर्पों के शत्रु गरुड़जी! सुनिए; दुष्ट बिना किसी स्वार्थ के साँप और चूहे के समान अकारण ही दूसरों का नुकसान करते है।
यानी यही फर्क होता है सन्त और असंत में– संत दूसरों की खुशी के लिए अपनी खाल उतरवा कर अपनी जान दे देते है परंतु असंत दूसरों को दुःख देने को अपनी खाल उतरवाते है। अर्थात खुद मर जायेंगे पर दूसरों को दुःख जरूर देंगे।
पर संपदा बिनासि नसाहीं।
जिमि ससि हति हिम उपल बिलाहीं।।
दुष्ट उदय जग आरति हेतु।
जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू।।
जो असंत होते है वो परायी सम्पति का नाश करके स्वयं नष्ट हो जाते है, जैसे खेती का नाश करके ओले नष्ट हो जाते है। दुष्ट की उन्नति प्रसिद्ध अधम ग्रह केतु के उदय की भाँति संसार के दुःख के लिये ही होती है।
7-क: ज्ञानी ? कश्चाज्ञानी
ज्ञानिन: ददति ज्ञानम् , अज्ञानिनस्तथैव च !
कार्यकाले अवगम्येत् को लग्न: क: पलायित: !
भावार्थ – कौन ज्ञानी हैं कौन अज्ञानी
ज्ञान विद्वान और अज्ञानी दोनो ही देते हैं एक समान देते हैं ! परन्तु ज्ञानी व्यक्ति समय आने पर ज्ञान का उपयोग करते हैं और अज्ञानी ज्ञानाभाव के कारण पलायन कर जाते है !
जयतु संस्कृतं
कृष्णम वन्दे जगत गुरुम

🌲क्षणशः कणशश्चैव विद्यां अर्थं च साधयेत्।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्॥🌲

👉 प्रत्येक क्षण का उपयोग सीखने के लिए और प्रत्येक छोटे से छोटे सिक्के का उपयोग उसे बचाकर रखने के लिए करना चाहिए, क्षण को नष्ट करके विद्याप्राप्ति नहीं की जा सकती और सिक्कों को नष्ट करके धन नहीं प्राप्त किया जा सकता।

8-दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः !
सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे !!
भावार्थ-
एक दुर्जन और एक सर्प मे यह अंतर है की साप तभी डंख मरेगा जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा
🙏🏻🌻श्याम राधेगोविन्द🌻🙏🏻

9-

;दुर्जनेन समं सख्यं, वैरं चापि न कारयेत्। उष्णो दहति चाङ्गारः शीतः कृष्णायते करम्
दुर्जन दुष्ट, क्रूर, बदमाश व्यक्ति के साथ मित्रता कभी नहीं करनी चाहिए । ऐसे व्यक्तियों के साथ शत्रुता भी नहीं करनी चाहिए । क्योंकि दोनों ही परिस्थितियों में दुर्जन व्यक्ति हमें परेशान करते हैं !

ठीक उसी प्रकार से जैसे कोयला यदि जल रहा हो तो उसे नहीं छूना चाहिए, क्योंकि छूने पर वह हमें जला देता है और यदि ठंडा हो तो भी उसे नहीं छूना चाहिए, क्योंकि छुने पर वह हमें काला कर देता है !

दुर्जनेन सह मित्रतां शत्रुतां वा न कुर्यात्। उभयत्रापि विपत्ति एव भवति ! यथा उष्णः अङ्गारः हस्तं दहति, परन्तु सः अङ्गारः यदा शीतलः भवति तदा पुनः हस्तं मलिनं करोति!!
🌲कृष्णम् वन्दे जगत गुरुम् 🌲

10-बुध्दिर्यस्य बलं तस्य निर्बुध्दैश्च कुतो बलम् !
वने हस्ती मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः !
भावार्थ-
जिसके पास में विद्या है वह शक्तिशाली है. निर्बुद्ध पुरुष के पास क्या शक्ति हो सकती है ? एक छोटा खरगोश भी चतुराई से मदमस्त हाथी को तालाब में गिरा देता है !
❣🙏🏻जय राधे गोविन्द🙏🏻❣

11-हर समय प्रसन्न रहने का परिणाम
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“प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते ।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते !!

स्थिरप्रज्ञ के लक्षणों की चर्चा करते हुए योगिराज श्रीकृष्णजी महाराज ने कहा है
समत्वयोग को धारण करने से मनुष्य को निर्मलता प्राप्त होती है। इस निर्मलता के प्राप्त होने पर उस व्यक्ति के दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्नचित्तवाले पुरुष की बुद्धि शीघ्र ही अच्छी प्रकार स्थिर हो जाती है!!
🙏🏻🌻कृष्णम् वन्दे जगत गुरुम् 🌻🙏🏻

12-अत्यन्त कोपः कटुका च ,वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरं
नीच प्रसङ्ग: कुलहीन सेवा ,चिह्नानि देहे नरक स्थितानाम्

अत्यंत क्रोध करना अति कटु कठोर तथा कर्कश वाणी का होना, निर्धनता, अपने ही बंधु बांधवों से बैर करना, नीचों की संगति तथा कुल हीन की सेवा करना यह सभी स्थितियां पृथ्वी पर ही नरक भोगने का प्रमाण है। ’’
🌻❣राधे गोविन्द ❣🌻

13-

योगदर्शन में पांच प्रकार के क्लेश बताए है :—

अविद्या, अस्मिता, राग , द्वेष तथा अभिनिवेश।

इनमें अविद्या ही बाकी चार क्लेशों की जननी है।

(१.) अविद्या :- चार प्रकार की है । एक – नित्य को अनित्य तथा अनित्य को नित्य मानना, शरीर तथा भोग के पदार्थों को ऐसे समझना तथा व्यवहार करना कि जैसे ये सदा रहने वाले हैं। आत्मा, परमात्मा तथा सत्य, न्याय आदि गुणों व धर्म को ऐसा मानना कि जैसे ये सदा रहने वाले नहीं हैं। दुसरा – अपवित्र को पवित्र तथा पवित्र को अपवित्र मानना, नदी , तालाब बावड़ी आदि में स्नान से या एकादशी आदि के व्रत ( फाके ) से समझना कि पाप छूट जाएंगे। सत्य भाषण , न्याय, परोपकार, सब से प्रेमपूर्वक बर्तना आदि में रूचि न रखना। तीसरा – दु:ख के कारण को सुख का कारण तथा सुख के कारण को दु:ख का कारण मानना – काम, क्रोध, लोभ, मोह, शोक, ईर्ष्या, द्वेष तथा विषय वासना में सुख मिलने की आशा करना। प्रेम, मित्रता, सन्तोष, जितेन्द्रियता आदि सुख के कारणों में सुख न समझना। चौथा – जड़ को चेतन तथा चेतन को जड मानना, पत्थर आदि की पूजा ईश्वर पूजा समझना तथा चेतन मनुष्य, पशु , पक्षी आदि को दु:ख देते हुए स्वयं जरा भी महसूस न करना कि जैसे वे निर्जीव हों ।

(२.) अस्मिता- जीवात्मा और बुद्धि को एक समझना अस्मिता है अभिमान के नाश होने पर ही गुणों के ग्रहण में रूचि होती हैं।

(३.) राग – जो जो सुख संसार में भोगे है, उन्हें याद करके फिर भोगने की इच्छा करना राग कहलाता है ।हर संयोग के पश्चात वियोग होता है- जब ऐसा ज्ञान मनुष्य को हो जाता है तब यह क्लेश मिट जाता है।

(४.) द्वेष – जिससे दु:ख मिला हो उसके याद आने पर उसके प्रति क्रोध होता है, यही द्वेष है ।

(५.) अभिनिवेश – सब प्राणियों की इच्छा होती है कि हम सदा जीवित रहे, कभी मरे नही , यही अभिनिवेश है। यह पूर्व जन्म के अनुभव से होता है। मरने का भय मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट , पतंग सभी को बराबर रहता है ।
🙏🏻🌻जय श्याम। राधे 🌻🙏🏻

15-दारिद्र्यनाशनं दान शीलं दुर्गतिनाशनम् !
अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी !!
भावार्थ-
दान दरिद्रता को खत्म करता हैं ,अच्छा आचरण, चरित्र दुःख को मिटाता हैं ! विवेक अज्ञान को मिटाता हैं और कार्य की विशद जानकारी भय को दूर करती हैं !
❣🙏🏻जय राधे गोविन्द🙏🏻❣
16-हस्ती हस्तसहस्त्रेण शतहस्तेन वाजिनः !
श्रृड्गिणी दशहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनः !!

हाथी से हजार गज की दुरी रखे.
घोड़े से सौ गज की.दूरी बनाकर रखे
सिंग वाले जानवर से दस गज की. दूरी होनी चाहिए
लेकिन दुष्ट जहाँ हो उस जगह देश/ स्थान से ही निकल जाए इसी में भलाई हैं !
🙏🏻❣ जय राधा माधव ❣🙏🏻

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